औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी
ऐ ज़ाहिद-ए-हक़-शनास वाले आलिम-ए-दीं
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
बरसात है दिल डस रहा है पानी
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद