जाने वाले क़मर को रोके कोई
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
ऐ ज़ाहिद-ए-हक़-शनास वाले आलिम-ए-दीं
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं