ज़ब्त-ए-गिर्या
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
पुर-हौल-शिकम अरीज़ सीने वालो
मुबहम पयाम
नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे