ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा नफ़्स को अपने पहचान
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
जाने वाले क़मर को रोके कोई
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर