औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
ज़ब्त-ए-गिर्या
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
जाने वाले क़मर को रोके कोई
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
बरसात है दिल डस रहा है पानी
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा