कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
पुर-हौल-शिकम अरीज़ सीने वालो
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा नफ़्स को अपने पहचान
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
मुबहम पयाम