औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
पुर-हौल-शिकम अरीज़ सीने वालो
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे