बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम