अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
जाने वाले क़मर को रोके कोई
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब