हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी
ज़ब्त-ए-गिर्या
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
मुबहम पयाम
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह