क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
बरसात है दिल डस रहा है पानी
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
जाने वाले क़मर को रोके कोई
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने
ज़ब्त-ए-गिर्या
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं