आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
मुबहम पयाम
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
बरसात है दिल डस रहा है पानी
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत