कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
मुबहम पयाम
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा नफ़्स को अपने पहचान
औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा