वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
ज़ब्त-ए-गिर्या
ऐ ज़ाहिद-ए-हक़-शनास वाले आलिम-ए-दीं
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर