औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
ऐ ज़ाहिद-ए-हक़-शनास वाले आलिम-ए-दीं
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा नफ़्स को अपने पहचान
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप