मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे