कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
बरसात है दिल डस रहा है पानी
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
पुर-हौल-शिकम अरीज़ सीने वालो
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
ऐ ज़ाहिद-ए-हक़-शनास वाले आलिम-ए-दीं