जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
जाने वाले क़मर को रोके कोई
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा नफ़्स को अपने पहचान