ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा नफ़्स को अपने पहचान
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
जाने वाले क़मर को रोके कोई
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
ज़ब्त-ए-गिर्या
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने
ऐ ज़ाहिद-ए-हक़-शनास वाले आलिम-ए-दीं