इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
मुबहम पयाम
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
ज़ब्त-ए-गिर्या
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा नफ़्स को अपने पहचान