आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
दाना के लिए नहीं कोई जा-ए-पनाह
इस अज़दर-ए-तहज़ीब के फ़रज़ंद-ए-रशीद
ये मज़हब ओ क़ानून अयाज़न-बिल्लाह
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दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
ऐ ज़ाहिद-ए-हक़-शनास वाले आलिम-ए-दीं
बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
मुबहम पयाम
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला