बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
अब आलम-ए-अर्वाह में टुक आओ भी यार
ये कौन बुला रहा है ''हम हैं ऐ जोश''
'आज़ाद' 'शरर' 'रफ़ीअ' 'शाएर' 'अबरार'
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कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
पुर-हौल-शिकम अरीज़ सीने वालो
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
मुबहम पयाम
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर