दिल की जानिब रुजूअ होता हों मैं
सर-ता-ब-क़द रुजूअ होता हों मैं
जब महर-ए-मुबीं ग़ुरूब हो जाता है
पैमाना-ब-कफ़ तुलू'अ होता हूँ मैं
Gulzar
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ऐ मर्द-ए-ख़ुदा नफ़्स को अपने पहचान
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
मुबहम पयाम
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला