क़ल्ब-ए-सहरा में छुटपुटे के वक़्त
दिल में ग़लताँ है एक तुर्फ़ा उमंग
मुझ से कहता है क्या ख़ुदा जाने?
धान के खेत पर शफ़क़ का रंग
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जाने वाले क़मर को रोके कोई
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
मुबहम पयाम
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
पुर-हौल-शिकम अरीज़ सीने वालो
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने