क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
दुनिया नहीं कुछ नुमूद-ए-ताक़त के सिवा
क़ुव्वत हासिल कर और मौला बन जा
माबूद नहीं है कोई क़ुव्वत के सिवा
Allama Iqbal
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Javed Akhtar
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Rahat Indori
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Faiz Ahmad Faiz
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बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
जाने वाले क़मर को रोके कोई
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने