आ कि बज़्म-ए-तरब सजा लें हम
आ कि इशरत का गीत गा लें हम
ज़िंदगी उम्र भर का रोना है
आ कि पल भर को मुस्कुरा लें हम
Faiz Ahmad Faiz
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गुलों का, नग़्मों का, ख़्वाबों का चाँदनी का सलाम
दर्द का जाम ले के जीते हैं
न तेरे दर्द के तारे ही अब सुलगते हैं
आसमाँ की बुलंदियों से नदीम
बड़ी शफ़ीक़, बड़ी ग़म-शनास लगती हैं
तुम्हारी याद के उजड़े हुए, उदास चमन
मिरी जवानी बहारों में भी उदास रही
ज़िंदगी की हसीन शहज़ादी
आरज़ू के दिए जलाने से
मिरी गली में ये आहट थी किस के क़दमों की
तुम गुनाहों से डर के जीते हो
हम फ़क़ीरों की बात क्यूँ पूछो