आसमाँ की बुलंदियों से नदीम
एक रौशन सितारा टूट गया
मेरे हाथों से जाम-ए-मुस्तक़बिल
फ़र्श-ए-माज़ी पे गिर के फूट गया
Allama Iqbal
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Habib Jalib
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न तेरे दर्द के तारे ही अब सुलगते हैं
बड़ी शफ़ीक़, बड़ी ग़म-शनास लगती हैं
हम फ़क़ीरों की बात क्यूँ पूछो
तुम घटाओं का एहतिमाम करो
दिल-जलों को सताने आए हैं
काविश-ए-सुब्ह-ओ-शाम बाक़ी है
गुलों का, नग़्मों का, ख़्वाबों का चाँदनी का सलाम
तू मिरे साथ अब नहीं है दोस्त
मिरी जवानी बहारों में भी उदास रही
तुम गुनाहों से डर के जीते हो
आ कि बज़्म-ए-तरब सजा लें हम