अर्ज़-ओ-समा कहाँ तिरी वुसअत को पा सके
मेरा ही दिल है वो कि जहाँ तू समा सके
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2490) Peoples Rate This
हम तुझ से किस हवस की फ़लक जुस्तुजू करें
सल्तनत पर नहीं है कुछ मौक़ूफ़
न रह जावे कहीं तू ज़ाहिदा महरूम रहमत से
बाग़-ए-जहाँ के गुल हैं या ख़ार हैं तो हम हैं
जान से हो गए बदन ख़ाली
हो गया मेहमाँ-सरा-ए-कसरत-ए-मौहूम आह
हम भी जरस की तरह तो इस क़ाफ़िले के साथ
अज़िय्यत मुसीबत मलामत बलाएँ
देख मुझे तबीब आज पूछा जो हालत-ए-मिज़ाज
अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगा
साक़ी मिरे भी दिल की तरफ़ टुक निगाह कर
बावजूदे कि पर-ओ-बाल न थे आदम के