साक़ी मिरे भी दिल की तरफ़ टुक निगाह कर
लब-तिश्ना तेरी बज़्म में ये जाम रह गया
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अर्ज़-ओ-समा कहाँ तिरी वुसअत को पा सके
यक-ब-यक नाम ले उठा मेरा
बाग़-ए-जहाँ के गुल हैं या ख़ार हैं तो हम हैं
ने गुल को है सबात न हम को है ए'तिबार
एक ईमान है बिसात अपनी
क़त्ल-ए-आशिक़ किसी माशूक़ से कुछ दूर न था
मैं जाता हूँ दिल को तिरे पास छोड़े
वाए नादानी कि वक़्त-ए-मर्ग ये साबित हुआ
तुझी को जो याँ जल्वा-फ़रमा न देखा
देख मुझे तबीब आज पूछा जो हालत-ए-मिज़ाज
समझना फ़हम गर कुछ है तबीई से इलाही को
कभू रोना कभू हँसना कभू हैरान हो जाना