ऐ शाह के ग़म में जान खोने वालो
ऐ इब्न-ए-अली के सदक़े होने वालो
इस अज्र-ए-अज़ीम को न दो हाथों से
अब दो ही शबें और हैं रोने वालो
Allama Iqbal
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अश्कों में नहाओ तो जिगर ठंडे हों
फ़ुर्सत कोई साअत न ज़माने से मिली
किस तरह करे न एक आलिम अफ़्सोस
ऐ ख़ालिक़-ए-ज़ुल-फ़ज़्ल-ओ-करम रहमत कर
दामाद-ए-रसूल की शहादत है आज
अंदाज़-ए-सुख़न तुम जो हमारे समझो
अल्लाह अल्लाह इज़्ज़-ओ-जाह-ए-ज़ाकिर
थे ज़ीस्त से अपनी हाथ धोए सज्जाद
कुछ मुल्क-ए-अदम में रंज का नाम न था
हुशियार है सब से बा-ख़बर है जब तक
आदम को ये तोहफ़ा ये हदिया न मिला
अकबर ने जो घर मौत का आबाद किया