किस तरह करे न एक आलिम अफ़्सोस
जी भर के किया न शह का मातम अफ़्सोस
क्या जल्द गुज़र गए ये दस दिन ग़म के
क्यूँ साहिबो हो चुका मोहर्रम अफ़सोस
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अल्लाह अल्लाह इज़्ज़-ओ-जाह-ए-ज़ाकिर
कुछ मुल्क-ए-अदम में रंज का नाम न था
राही तरफ़-ए-आलम-ए-बाला हूँ मैं
अंजाम पे अपने आह-ओ-ज़ारी कर तू
अब ज़ेर-ए-क़दम लहद का बाब आ पहुँचा
बरहम है जहाँ अजब तलातुम है आज
थे ज़ीस्त से अपनी हाथ धोए सज्जाद
जो मर्तबा अहमद के वसी का देखा
गुलशन में सबा को जुस्तुजू तेरी है
मय-ख़ान-ए-कौसर का शराबी हूँ मैं
अब गर्म ख़बर मौत के आने की है