हाल-ए-बद में मिरे ब-तंग आ कर
आप को सब में नेक-नाम किया
हो गया दिल मिरा तबर्रुक जब
दर्द ने क़ितआ-ए-पयाम किया
Anwar Masood
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मैं बे-नवा उड़ा था बोसे को उन लबों के
ताब-ओ-ताक़त को तो रुख़्सत हुए मुद्दत गुज़री
तस्कीन-ए-दिल के वास्ते हर कम-बग़ल के पास
मय-कशी सुब्ह-ओ-शाम करता हूँ
न समझा गया अब्र क्या देख कर
वाए इस जीने पर ऐ मस्ती कि दौर-ए-चर्ख़ में
गह सरगुज़िश्त उन ने फ़रहाद की निकाली
हुआ है अहल-ए-मसाजिद पे काम अज़-बस तंग
दिल टुक उधर न आया ईधर से कुछ न पाया
फिर भी करते हैं 'मीर'-साहिब इश्क़
ख़ूब है ख़ाक से बुज़ुर्गों की
फूलों की सेज पर से जो बे-दिमाग़ उठ्ठे