तस्कीन-ए-दिल के वास्ते हर कम-बग़ल के पास
इंसाफ़ करिए कब तईं मुख़्लिस हक़ीर हो
यक वक़्त ख़ास हक़ में मिरे कुछ दुआ करो
तुम भी तो 'मीर' साहब ओ क़िबला फ़क़ीर हो
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Gulzar
Rahat Indori
Javed Akhtar
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2900) Peoples Rate This
फूलों की सेज पर से जो बे-दिमाग़ उठ्ठे
न आया वो तो क्या हम नीम-जाँ भी
बुत-ख़ाने से दिल अपने उठाए न गए
फिर भी करते हैं 'मीर'-साहिब इश्क़
इतने भी हम ख़राब न होते रहते
'मीर' को ज़ोफ़ में मैं देख कहा कुछ कहिए
न समझा गया अब्र क्या देख कर
न जानूँ 'मीर' क्यूँ ऐसा है चिपका
सुना है चाह का दावा तुम्हारा
गह सरगुज़िश्त उन ने फ़रहाद की निकाली
दुनिया से दर-गुज़र कि गुज़रगह अजब है ये
तुम तो ऐ मेहरबान अनूठे निकले