यही दर्द-ए-जुदाई है जो इस शब
तो आता है जिगर मिज़्गान-ए-तर तक
दिखाई देंगे हम मय्यत के रंगों
अगर रह जाएँगे जीते सहर तक
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
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कोह-ओ-सहरा भी कर न जाए बाश
तुम तो ऐ मेहरबान अनूठे निकले
बुत-ख़ाने से दिल अपने उठाए न गए
वाए इस जीने पर ऐ मस्ती कि दौर-ए-चर्ख़ में
हर-चंद गदा हूँ मैं तिरे इश्क़ में लेकिन
हो आशिक़ों में उस के तो आओ 'मीर'-साहिब
न समझा गया अब्र क्या देख कर
ताब-ओ-ताक़त को तो रुख़्सत हुए मुद्दत गुज़री
दुनिया से दर-गुज़र कि गुज़रगह अजब है ये
तड़प है क़ैस के दिल में तह-ए-ज़मीं इस से
मय-कशी सुब्ह-ओ-शाम करता हूँ