दिल टुक उधर न आया ईधर से कुछ न पाया
फूलों की सेज पर से जो बे-दिमाग़ उठ्ठे
तड़प है क़ैस के दिल में तह-ए-ज़मीं इस से
बुत-ख़ाने से दिल अपने उठाए न गए
न आया वो तो क्या हम नीम-जाँ भी
यही दर्द-ए-जुदाई है जो इस शब
तुम तो ऐ मेहरबान अनूठे निकले
न जानूँ 'मीर' क्यूँ ऐसा है चिपका
मय-कशी सुब्ह-ओ-शाम करता हूँ
दुनिया से दर-गुज़र कि गुज़रगह अजब है ये
फिर भी करते हैं 'मीर'-साहिब इश्क़
हाल-ए-बद में मिरे ब-तंग आ कर