है जानी तुझ में सब ख़ूबी प जाँ सा
तू बातों में बिगड़ जाता है मुझ से
हम गुनहगारों के क्या ख़ून का फीका था रंग
जब कि ज़ुल्फ़ उस की गले खा बल पड़ी
ओ अतारिद ज़ुहल-ए-नहिस से टुक माँग मिदाद
कहा किस ने कि तुम ये वो न बोलो
जिलाओ मारो दुरकारो बुला लो गालियाँ दे लो
कौन कहता है कि तू ने हमें हट कर मारा
ख़िज़ाँ तन्हा न सैर-ए-बोस्ताँ को जा बिगाड़ आई
तुम खुल रहे थे ग़ैर से छाँव तले खड़े
हमें छोड़ कीधर सिधारे पियारे
बह चुका ख़ून-ए-दिल आँख तक आ पहुँचा सैल