जाते हुए कहते हो क़यामत को मिलेंगे
क्या ख़ूब क़यामत का है गोया कोई दिन और
Habib Jalib
Javed Akhtar
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Gulzar
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Wasi Shah
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(3010) Peoples Rate This
बे-इश्क़ उम्र कट नहीं सकती है और याँ
फिर हुआ वक़्त कि हो बाल-कुशा मौज-ए-शराब
दश्ना-ए-ग़म्ज़ा जाँ-सिताँ नावक-ए-नाज़ बे-पनाह
सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का
आमद-ए-सैलाब-ए-तूफ़ान-ए-सदा-ए-आब है
मरते मरते देखने की आरज़ू रह जाएगी
दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग
वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है
कुछ तो पढ़िए कि लोग कहते हैं
मैं ने कहा कि बज़्म-ए-नाज़ चाहिए ग़ैर से तिही
सुनते हैं जो बहिश्त की तारीफ़ सब दुरुस्त
यक-ज़र्रा-ए-ज़मीं नहीं बे-कार बाग़ का