तेशे बग़ैर मर न सका कोहकन 'असद'
सरगश्ता-ए-ख़ुमार-ए-रुसूम-ओ-क़ुयूद था
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ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के
है सब्ज़ा-ज़ार हर दर-ओ-दीवार-ए-ग़म-कदा
तू ने क़सम मय-कशी की खाई है 'ग़ालिब'
किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो
हुए मर के हम जो रुस्वा हुए क्यूँ न ग़र्क़-ए-दरिया
वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ
ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता को दूर से मत दिखा कि यूँ
साबित हुआ है गर्दन-ए-मीना पे ख़ून-ए-ख़ल्क़
क़तरा अपना भी हक़ीक़त में है दरिया लेकिन
आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे
आज वाँ तेग़ ओ कफ़न बाँधे हुए जाता हूँ मैं
गर ख़ामुशी से फ़ाएदा इख़्फ़ा-ए-हाल है