उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
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तेशे बग़ैर मर न सका कोहकन 'असद'
क्या फ़र्ज़ है कि सब को मिले एक सा जवाब
हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी
नुक्ता-चीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाए न बने
अब जफ़ा से भी हैं महरूम हम अल्लाह अल्लाह
होगा कोई ऐसा भी कि 'ग़ालिब' को न जाने
बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
हर इक मकान को है मकीं से शरफ़ 'असद'
तग़ाफ़ुल-दोस्त हूँ मेरा दिमाग़-ए-अज्ज़ आली है
हुआ है शह का मुसाहिब फिरे है इतराता
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा
बे-नियाज़ी हद से गुज़री बंदा-परवर कब तलक