कल के लिए कर आज न ख़िस्सत शराब में
न लेवे गर ख़स-ए-जौहर तरावत सब्ज़ा-ए-ख़त से
सर-गश्तगी में आलम-ए-हस्ती से यास है
मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं
हूँ गिरफ़्तार-ए-उल्फ़त-ए-सय्याद
महरम नहीं है तू ही नवा-हा-ए-राज़ का
है कहाँ तमन्ना का दूसरा क़दम या रब
जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी
वफ़ा-दारी ब-शर्त-ए-उस्तुवारी अस्ल ईमाँ है
ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री 'ग़ालिब'
रहा गर कोई ता-क़यामत सलामत
आँख की तस्वीर सर-नामे पे खींची है कि ता