मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस

मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
नाममिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
अंग्रेज़ी नामMirza Mohammad Taqi Hawas
जन्म की तारीख1766
मौत की तिथि1836

ज़ाहिद का दिल न ख़ातिर-ए-मय-ख़्वार तोड़िए

या ख़फ़ा होते थे हम तो मिन्नतें करते थे आप

तलाश इस तरह बज़्म-ए-ऐश में है बे-निशानों की

सुनता हूँ न कानों से न कुछ मुँह से हूँ बकता

सहरा में 'हवस' ख़ार-ए-मुग़ीलाँ की मदद से

सद-चाक किया पैरहन-ए-गुल को सबा ने

सब हम-सफ़ीर छोड़ के तन्हा चले गए

रंग-ए-गुल-ए-शगुफ़्ता हूँ आब-ए-रुख़-ए-चमन हूँ मैं

न पाया वक़्त ऐ ज़ाहिद कोई मैं ने इबादत का

न काफ़िर से ख़ल्वत न ज़ाहिद से उल्फ़त

माथे पे लगा संदल वो हार पहन निकले

लुत्फ़-ए-शब-ए-मह ऐ दिल उस दम मुझे हासिल हो

हम गए थे उस से करते शिकवा-ए-दर्द-ए-फ़िराक़

हवस हम पार होएँ क्यूँकि दरिया-ए-मोहब्बत से

हमारी देखियो ग़फ़लत न समझे वाए नादानी

दिल में इक इज़्तिराब बाक़ी है

देखें क्या अब के असीरी हमें दिखलाती है

ऐ आफ़्ताब हादी-ए-कू-ए-निगार हो

आश्ना कोई नज़र आता नहीं याँ ऐ 'हवस'

यही कहती लैली-ए-सोख़्ता-जाँ नहीं खाती अदब से ख़ुदा की क़सम

उस परी-रू ने न मुझ से है निबाही क्या करूँ

तू जो पड़ा फिरता है आज कहीं कल कहीं

शौक़-ए-ख़राश-ए-ख़ार मिरे दिल में रह गया

रंग-ए-गुल-ए-शगुफ़्ता हूँ आब-ए-रुख़-ए-चमन हूँ मैं

नित जी ही जी में इश्क़ के सदमे उठाइयो

न पाया खोज बरसों नक़्श-ए-पा-ए-रफ़्तगाँ ढूँढे

मुज़्दा ये सबा उस बुत-ए-बे-बाक को पहुँचा

माथे पे लगा संदल वो हार पहन निकले

मैं न समझा बुलबुल बे-बाल-ओ-पर ने क्या कहा

मैं कहा बोलना शब ग़ैर से था तुम को क्या

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