आफ़ाक़ से उस्ताद-ए-यगाना उठा
मज़मूँ के जवाहर का ख़ज़ाना उट्ठा
इंसाफ़ का नौहा है ये बाला-ए-ज़मीं
सरताज-ए-फ़सीहान-ए-ज़माना उठा
Parveen Shakir
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Allama Iqbal
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Anwar Masood
Jaun Eliya
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(898) Peoples Rate This
मशहूर-ए-जहाँ है दास्तान-ए-शीरीं
आदा को उधर हराम का माल मिला
फिर चर्ख़ पर आसमान-ए-पीर आया है
फ़रमान-ए-अली लौह-ओ-क़लम तक पहुँचा
इस दर पे हर एक शादमाँ रहता है
बिलक़ीस पासबाँ है ये किस की जनाब है
या शाह-ए-नजफ़ थाम लो इस किश्वर को
हर चश्म से चश्मे की रवानी हो जाए
अदना से जो सर झुकाए आला वो है
हम-शान-ए-नजफ़ न अर्श-ए-अनवर ठहरा
सुग़रा का मरज़ कम न हुआ दरमाँ से
किस शेर की आमद है कि रन काँप रहा है