हम-शान-ए-नजफ़ न अर्श-ए-अनवर ठहरा
मीज़ान में ये भारी वो सुबुक-तर ठहरा
इस पल्ले में था नजफ़ और उस पल्ले में अर्श
पहुँचा वो फ़लक पे ये ज़मीं पर ठहरा
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किस शेर की आमद है कि रन काँप रहा है
फिर चर्ख़ पर आसमान-ए-पीर आया है
बिलक़ीस पासबाँ है ये किस की जनाब है
सुग़रा का मरज़ कम न हुआ दरमाँ से
आफ़ाक़ से उस्ताद-ए-यगाना उठ्ठा
आहों से अयाँ बर्क़-फ़िशानी हो जाए
है रज़्म सरापा तो ज़बाँ और ही है
मशहूर-ए-जहाँ है दास्तान-ए-शीरीं
परवाने को धुन शम्अ को लौ तेरी है
अदना से जो सर झुकाए आला वो है
ऐ ख़िज़्र के रहबर मुझे गुमराह न कर