हर चश्म से चश्मे की रवानी हो जाए
फिर ताज़ा मिरी मर्सिया ख़्वानी हो जाए
फ़ज़्ल-ए-बारी से हों ये आँसू जारी
सावन की घटा शर्म से पानी हो जाए
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आफ़ाक़ से उस्ताद-ए-यगाना उठ्ठा
क्या क़ामत-ए-अहमद ने ज़िया पाई है
इस बज़्म को जन्नत से जो ख़ुश पाते हैं
बिलक़ीस पासबाँ है ये किस की जनाब है
इस दर पे हर एक शादमाँ रहता है
किस शेर की आमद है कि रन काँप रहा है
हम-शान-ए-नजफ़ न अर्श-ए-अनवर ठहरा
इस बज़्म में अर्बाब-ए-शुऊर आए हैं
आहों से अयाँ बर्क़-फ़िशानी हो जाए
दरगाह-ए-अलम-दार से बहबूदी है
अदना से जो सर झुकाए आला वो है