मशहूर-ए-जहाँ है दास्तान-ए-शीरीं
शीरीं ने फ़िदा की शह पे जान-ए-शीरीं
शब्बीर की है वअ'दा वफ़ाई का बयाँ
गोया मिरे मुँह में है ज़बान-ए-शीरीं
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ऐ ख़िज़्र के रहबर मुझे गुमराह न कर
सुग़रा का मरज़ कम न हुआ दरमाँ से
हर चश्म से चश्मे की रवानी हो जाए
बिलक़ीस पासबाँ है ये किस की जनाब है
या शाह-ए-नजफ़ थाम लो इस किश्वर को
आफ़ाक़ से उस्ताद-ए-यगाना उठ्ठा
इस बज़्म में अर्बाब-ए-शुऊर आए हैं
फिर चर्ख़ पर आसमान-ए-पीर आया है
परवाने को धुन शम्अ को लौ तेरी है
इस दर पे हर एक शादमाँ रहता है
आदा को उधर हराम का माल मिला
दरगाह-ए-अलम-दार से बहबूदी है