साबित ये कर रहा हूँ कि रहमत-शनास हूँ
हर क़िस्म का गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
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मौत से किस को रुस्तगारी है
चमन में शब को घिरा अब्र-ए-नौ-बहार रहा
कहने में नहीं हैं वो हमारे कई दिन से
देख लो हम को आज जी भर के
ज़हर-ए-इश्क़
आप की गर मेहरबानी हो चुकी
गेसू रुख़ पर हवा से हिलते हैं
गए जो ऐश के दिन मैं शबाब क्या करता