उम्र-ए-रफ़्ता के रेशमी लम्हे
धुँद में खो गए धुआँ बन कर
नग़्मा ओ रंग के सभी मौसम
रह गए ज़ेहन में ख़िज़ाँ बन कर
बन गया हाल कत्बा-ए-माज़ी
कैसी दुनिया है उस का हर मंज़र
संग-बस्ता अज़ाब लगता है
आँसुओं की किताब लगता है
Rahat Indori
Anwar Masood
Gulzar
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Habib Jalib
Javed Akhtar
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मिरे वजूद से आती है इक सदा मुझ को
हम-ज़ाद
टूट कर रह गया आईने से रिश्ता अपना
एल्बम
तसल्ली
सामने ख़ंजर रख कर देखें
आँसुओं में कभी ढली है रात
आवाज़ों के जंगल में सुनाई नहीं देता
किसी का नक़्श जो पल भर रहा है आँखों में
ग़ज़ल-मिज़ाज है यकसर ग़ज़ल का लहजा है
मता-ए-उम्र-ए-गुज़िश्ता समेट कर ले जा
पुराने तमाशे