गुल-दान में गुलाब की कलियाँ महक उठीं
कुर्सी ने उस को देख के आग़ोश वा किया
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शेर तो सब कहते हैं क्या है
तिरा न मिलना अजब गुल खिला गया अब के
खिड़कियों से झाँकती है रौशनी
बस के नीचे कोई नहीं आता फिर भी
बाज़ार के दामों की शिकायत है हर इक को
शांति की दुकानें खोली हैं
शोर साहिल का समुंदर में न था
अब जिधर भी जाते हैं
क्या कहते क्या जी में था
हैरान मत हो तैरती मछली को देख कर
कोई बैंड-बाजा सा कानों में था
इत्तिफ़ाक़