गुफ़्तुगू ने ली करवट
मुस्कुरा उठीं कलियाँ
खिलखिला उठे एहसास
नफ़्स के परिंदे की फिर ज़रा बढ़ी पर्वाज़
मैं ने फिर उसे छेड़ा
उस ने फिर मुझे छेड़ा
ऐन छेड़-ख़्वानी में
जब हुआ जुनूँ बेदार
एक आँख दिलबर की
टप से गिर पड़ी नीचे
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बुक़रात बहुत खाता था
मार लाता है जूतियाँ दो चार
शौहर ने आज...
झूट है दिल न जाँ से उठता है
इश्क़ औलाद कर रही है मगर
जब भी वालिद की जफ़ा याद आई
दूसरी ने जो सँभाली चप्पल
जल गया कौन मेरे हँसने पर
यहाँ जितने हैं अपने बाप के हैं
रौशन ख़याली
दबाना शर्त है बजते हैं सारे
नक़ली आँख