कहा इठला के उस ने आइए ना
यहाँ मेरे सिवा कोई नहीं है
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यहाँ जितने हैं अपने बाप के हैं
दूसरी ने जो सँभाली चप्पल
अफ़सर और घोड़ा
छछूंदर
ज़ुल्फ़ के पेच में लटके हुए शाएर का वजूद
बुक़रात बहुत खाता था
नक़ली आँख
जल गया कौन मेरे हँसने पर
जब हुआ काले का गोरे से मिलाप
अलामत के पस-मंज़र में
न दी अंग्रेज़ ने 'ग़ालिब' को पेंशन
हम को देखे जो आँख वाला हो